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बज्म ए ख़यालात और तसब्बुर के साये ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण।

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"बज्म ए ख़यालात "और "तसब्बुर के साये" ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण  ,,,,,,,,,,,,,,, आज साहिबाबाद स्थित टू मीडिया कार्यालय में एक साथ दो पुस्तकों का लोकार्पण (बज़्म ए ख़यालात )  श्रीमती पुष्प लता राठौर की और (तसव्वुर के साये) आलोक रंजन इंदौरवी की  पुस्तक का लोकार्पण हुआ । लोकार्पण के बाद कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें अध्यक्षता ओम प्रकाश प्रजापति नें की और मुख्य अतिथि के रूप में अशोक छोकर जी उपस्थित रहे विशेष अतिथि में आलोक रंजन इंदौरवी श्रीमती रेखा अस्थाना और श्रीमती पुष्प लता राठौर जी रहे। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव प्रभु लाल चौधरी एवं टू मीडिया के अध्यक्ष ओम प्रकाश प्रजापति जी का बहुत-बहुत आभार। कवि गोष्ठी में देश के जाने माने साहित्यकार और ग़ज़ल कारों ने भाग लिया। जिसमें पूनम माटिया जी, ऊषा श्रीवास्तव सीमा सागर ,सीमा गर्ग जगदीश मीणा जी, श्रीमती रेखा अस्थाना जी आदि प्रमुख हैं।

आजादी का अमृत वर्ष पर्यावरण पर केंद्रित होगा अखिल भारतीय सर्व भाषा संमन्वय समिति का सतरहवां अधिवेशन।

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आजादी का अमृत वर्ष    *पर्यावरण पर केन्द्रित होगा अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति का सत्रहवां राष्ट्रीय अधिवेशन*  +++++++++++++++++++ देशभर  के चुनिंदा साहित्यकार, संगीतकार और संस्कृतिकर्मी सम्मानित होंगे इस अधिवेशन में। ++++++++++++++++++++ नई दिल्ली- अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति (पंजीकृत) साहित्य/कला/संस्कृति और देश की समस्त भाषाओं के उन्नयन को समर्पित  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित एक गैर सरकारी देश की  एक अगृणी  संस्था है जो अभी तक दिल्ली, मुंबई ( महाराष्ट्र),गोवा, गुवाहाटी (असम), जम्मू कश्मीर, शिमला ( हिमाचल), बैंगलुरू (कर्नाटक), अंडमान निकोबार, शिरडी, बद्रीनाथ (उत्तराखंड), ग्वालियर ( मध्यप्रदेश), मुरैना ( मध्यप्रदेश),हिसार ( हरियाणा), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश)और मसूरी  ( उत्तराखंड) सहित, देश के भिन्न-भिन्न सोलह राज्यों में अपने राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित कर चुकी है और   आजादी के अमृतवर्ष पर अपना अगला तीन दिवसीय सत्रहवां राष्ट्रीय अधिवेशन  *गुजरात साहित्य महोत्सव* गुजरात की राजधानी गांधी नगर में आगामी 28/29/30  दि

यह कैसा दौर है ,चारों ओर शोर है ,इंसा की कीमत नहीं, आज कहीं ओर है।दुखता है दिल यहां, रोती है आंखें यहां, पग पग पर होती है परीक्षाएं भी यहां।नहीं आंसुओं की कीमत, दर्द चारों ओर है, मिलते है चोर डाकू, देखो हर मोड़ है।सहन शक्ति और आदर्शों का शोर है,दिलों के भीतर देखो, पाप चारों ओर है।अच्छाई दिखती नहीं, यहां किसी छोर है, आंखों में लाज शर्म, आज नहीं ओर है ।मिलते हैं हंस कर,पीछे रुलाता हर कोर है,होठों को सिता नहीं ,जमाना किस ओर है।सूखे हैं खेत यहां, सूखे खलीहान है,पनघट पर अब नहीं, जाता कोई ओर है।प्यासी है आंखे और ,दिल रोता तार-तार है,जर्रे जर्रे में देखो ,बेवफाई हर ओर है।ये ऐसादौर है इंसान गिरे तो, हंसी चहूं ओर है, मोबाइल गिरे तो दिल होता चकनाचूर है।ऋतु गर्ग,सिलिगुड़ी,पश्चिम बंगालस्वरचित मौलिक रचनाgargritu0101@gmail.com

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ग़ज़ल

ग़ज़ल ज़िंदगी कितनी  दस्तूरी  यहाँ  पर मांग लो दिल से   मंजूरी  यहाँ  पर फिसल जाएगा  वक्त हाथों से  ढलती है  शाम  सिन्दूरी  यहाँ  पर अक्श दिखता है हर शै में तुम्हारा  याद महकी है  कस्तूरी  यहाँ  पर  राह कैसे मिले हैं दूर मंजिल  कैसी कैसी है मजबूरी  यहाँ  पर हौसलों नें  भरी  ऊंची  उड़ाने बनाया आसमाँ  दूरी यहाँ  पर  'शमा'ये सोचती है हो पाये यूँ  शब-ए-हिज्र   बेनूरी   यहाँ  पर।                 @सविता 'शमा'

आपका हंसी चेहरा

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"आपका हसीं चेहरा, माहताब जैंसा है जिसको लोग पढ़ते हैं, उस किताब जैंसा है                    माफ़ कीजिये मेरी, हर ख़ता मुहब्बत में आपका ख़फ़ा होना, इंक़लाब जैंसा है                   क्या करूंगी मैं तुमसे, आज गुलिस्तां लेकर फूल मेरे दामन में,जब गुलाब जैंसा है                    मैं मज़ाजी दुनियां में, और की अमानत हूँ आपसे मेरा मिलना, सिर्फ ख्वाब जैंसा है                    आप इस जगह आकर, क्या दीये जलाओगे रोशनी का ये आलम, आफ़ताब जैंसा है                     ज़िंदगी गुज़ारो तुम, प्यार और मुहब्बत से आदमी का ये जीवन इक हुबाब जैंसा है                   लोग तंज़ करते हैं, "वंदना" गरीबों पर मुफ़लिसी में जीना भी, इक अज़ाब जैंसा है ...!" वंदना विशेष गुप्ता लखनऊ उत्तरप्रदेश

ग़ज़ल जिंदगी भर साजिशें रचता रहा मेरे खिलाफ

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ज़िंदगी भर साजिशें रचता रहा मेरे ख़िलाफ़ खूब सारी नफरतें करता रहा मेरे ख़िलाफ़ मैं उसे अपना ही समझा वो पराया हो गया साथ तूफानों के वो चलता रहा मेरे ख़िलाफ़ दुश्मनी तो दुश्मनी है दोस्ती की आड़ में दुश्मनी की राह में बढ़ता रहा मेरे ख़िलाफ़ सच की दीवारों पे हमने सच लिखा था और वो झूठ की हर बंदिशें लिखता रहा मेरे खिलाफ़ आज तक भी जान पाया ही नहीं उसकी जुबां कौन सी वो आयतें पढ़ता रहा मेरे खिलाफ़ आलोक रंजन इंदौरवी

दीप जलाकर देहरी पर

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दीप जलाकर देहरी पर जब तुलसी की पूजा होगी हृदय कुंज में कुंज बिहारी मुरती की पूजा होगी नकारात्मक राजनीति का ये भी ऐसा पहलू है जब कुर्सी पर बैठ गए तो कुर्सी की पूजा होगी डर डर कर के जीने वालों को वो आज समझते हैं उल्टी-सीधी उनकी बंदर घुड़की की पूजा होगी अपनी संस्कृति की मर्यादा हमको आज बचाना है चलो दशहरे के दिन भाला बरछी की पूजा होगी मंदिर खुलने और बंद होने की सीमा निश्चित है मन मंदिर में कान्हा तेरी मरजी की पूजा होगी आलोक रंजन इंदौरवी